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अब के भी आकर वो कोई हादसा दे जाएगा / द्विजेन्द्र 'द्विज'
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अब के भी आकर वो कोई हादसा दे जाएगा
और उसके पास क्या है जो नया दे जाएगा
फिर से ख़जर थाम लेंगी हँसती—गाती बस्तियाँ
जब नए दंगों का फिर वो मुद्दआ दे जाएगा
‘एकलव्यों’ को रखेगा वो हमेशा ताक पर
‘पाँडवों’ या ‘कौरवों’ को दाख़िला दे जाएगा
क़त्ल कर के ख़ुद तो वो छुप जाएगा जाकर कहीं
और सारे बेगुनाहों का पता दे जाएगा
ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी के साये न होंगे नसीब
ऐसी मंज़िल का हमें वो रास्ता दे जाएगा