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अब के सावन में शरारत / गोपालदास "नीरज"
Kavita Kosh से
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अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई
मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई
आप मत पूछिये क्या हम पे 'सफ़र में गुज़री?
आज तक हमसे हमारी न मुलाकात हुई
हर गलत मोड़ पे टोका है किसी ने मुझको
एक आवाज़ तेरी जब से मेरे साथ हुई
मैंने सोचा कि मेरे देश की हालत क्या है
एक क़ातिल से तभी मेरी मुलाक़ात हुई