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अब कोई फर्क नहीं पड़ता / अर्चना अर्चन

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अब कोई फर्क नहीं पड़ता
तुम आओ या ना आओ
जीवन की कड़ी धूप में
घटा बन, छाओ या ना छाओ
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
तुम आओ या ना आओ

ये एकतरफा सही
फिर भी मगर प्यार तो था
हाँ, तुम कहते रहे 'दोस्ती' इसको,
पर, तुम्हें स्वीकार तो था
ना जाने क्यों रहा
मुझको ये यकीं हरदम
तुम न मेरे सही,
मैं हूँ तुम्हारी, कम से कम
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
तुम पास बुलाओ या ना बुलाओ
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
तुम आओ या ना आओ

मैंने देखा है बहुतों को
इश्क करते हुए
प्यार के नाम पर
मारते हुए, मरते हुए
मैं नहीं उनमें
जो किसी के वास्ते जां दे दूं
जिसने इज़हार तक ना किया
उसे कैसे बेवफा कह दूं?
पर
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
तुम प्यार जताओ या ना जताओ
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
तुम आओ या ना आओ

मैं मानती हूँ कि
कुछ मजबूरियाँ भी होती हैं
प्यार की किस्मत में
कुछ दूरियाँ भी होती हैं
मैं बेरु खी का सबब तुमसे
पूछती ही रही
पर तुम खामोश रहे
और कहा कुछ भी नहीं
अब, कोई फर्क नहीं पड़ता
तुम बताओ या ना बताओ
मुझे फर्क नहीं पड़ता
तुम आओ या ना आओ