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अब कोई भी रिश्ता क्या है / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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अब कोई भी रिश्ता क्या है
सौदों जैसा इक सौदा है

ग़ैरों के अंदाज़ के आगे
अपना भी फीका लगता है

मुझसे तुझको शिकवा कैसा
मैं वैसा हूँ तू जैसा है

हर कोई ख़ुद अपनी ख़ुदी से
जाने कब-कब बिछड़ गया है

हर इक शख़्स उसूलों वाला
अपनी सलीबों पे लटका है

रास नहीं आती सच्चाई
झूठ बहुत अच्छा लगता है

बेटा अपने बाप से बोला
तू इक बच्चा-सा लगता है

बचपन में न जाने क्या था
बचपन याद बहुत आता है