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अब क्या जबाब दें / आनंद कुमार द्विवेदी
Kavita Kosh से
हम खुद गुलाब है किसी को क्या गुलाब दें
इतने हैं लाज़बाब, कि अब क्या जबाब दें
मुझको हर एक रस्म निभाने का शौक था
कैसे हुए खराब, कि अब क्या जबाब दें
अहसास की बातों को अहसास ही रहने दें
मत पूछिए जनाब, कि अब क्या जबाब दें
वो तो कमाल था ही हम भी कमाल निकले
कैसे कटी शबाब, कि हम क्या जबाब दें
कितनी मिली मोहब्बत औ कितना दर्द पाया
मत पूछिए हिसाब, कि अब क्या जबाब दें
यूँ तो हज़ार चेहरे ‘आनंद’ झांक आया
सब पर मिली नकाब, कि अब क्या जबाब दें