भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब चलो मेहनतकशों के गीत गाएँ / विनोद तिवारी
Kavita Kosh से
अब चलो मेहनतकशों के गीत गाएँ
स्वर्ग को वापस धरा पर खींच लाएँ
सभ्यता, सम्पन्नता युग की प्रगति पर
स्रोत हैं मज़दूर की फूली शिराएँ
घाटियों के तुंग शिखरों के विलय तक
हर क़दम पर हैं सुखद संभावनाएँ
आदमी अपना इरादा बाँध ले तो
साथ देती हैं ज़माने की हवाएँ
अलविदा सदियों पुरानी हीनताओ
जीतनी हैं अब हमें प्रतियोगिताएँ