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अब चलो मेहनतकशों के गीत गाएँ / विनोद तिवारी

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अब चलो मेहनतकशों के गीत गाएँ
स्वर्ग को वापस धरा पर खींच लाएँ

सभ्यता, सम्पन्नता युग की प्रगति पर
स्रोत हैं मज़दूर की फूली शिराएँ

घाटियों के तुंग शिखरों के विलय तक
हर क़दम पर हैं सुखद संभावनाएँ

आदमी अपना इरादा बाँध ले तो
साथ देती हैं ज़माने की हवाएँ

अलविदा सदियों पुरानी हीनताओ
जीतनी हैं अब हमें प्रतियोगिताएँ