भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब जगे हैं तो फिर से सुलाना नहीं / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
अब जगे हैं तो फिर से सुलाना नहीं
जागरण है हमेशा भुलाना नहीं
रूठना औ मनाना बहुत हो गया
रूठ जाने का कोई बहाना नहीं
जो मिला है हमें, हम क्यों न कहें
उससे बढ़कर तो कोई खज़ाना नहीं
अब मिले हो तो जाने न देंगे तुम्हें
तुम हमारे हो गर, छोड़ जाना नहीं
जब मिटेगी दीवारे ये मैं तू की सब
तब नई भीत कोई उठाना नहीं।