अब जबकि तुम चली गई हो, माँ ! / राकेश रेणु
कौन बताएगा तिलबा-चूरा के रोज़
सुबह-सवेरे ठिठुरते हुए नहाकर
कौन सी ढेरी छूनी है चावल की
कि मकसद केवल धुआँ लगाना है तिल का
अलाव तापना नहीं
कि तिल-गुड़ खाने से गर्मी आती है शरीर में ?
जाड़े के उन्हीं दिनों में
कौन रखेगा छुपाकर
खेसारी की साग मेरे लिए
कौन पहचानेगा तार उँगलियों पर
लाई बान्धने से पहले
और लाई की तरह ही
कौन बान्धे रख पाएगा पूरे परिवार को
एक सोंधी मिठास के साथ ?
कौन बनाएगा खिलौने सूखी हुई डण्ठल से
मडुवा कटनी के दिनों में
कौन बताएगा
कि नहीं खाना चाहिए अमौरियाँ
सतुआनी से पहले किसी भी हाल में ?
किस दिन खिलाते हैं पखेओ बैलों को
छठ के बाद
किस रोज़ होगी गोवर्धन पूजा
सुबह उठकर किस दिन
नहाना पड़ेगा बगैर बोले
कि बढ़ोतरी होती है उपज और अनाज में
किस रोज़ घर लाने से गेहूँ की भुनी हुई बालियाँ
नहीं लगती बुरी नज़र
लहसुन लटकाने से गले में ?
कौन बताएगा यह सब
अब जबकि तुम चली गई हो, माँ ?