अब जलती है अब जलती है
गीली लकड़ी कब जलती है
कर्म नदी के शीतल जल में
तृष्ण बे-मतलब जलती है
याद रहे तो भूल न होगी
शम्आ सारी शब जलती है
भोर लगे है घोर अमावस
कौन चिता यारब जलती है
अँधियारे ये जान चुके हैं
दीप शिखा बेढब जलती है
हिर्सो-हवस की आग है ‘रौशन’
घर-बाहर जब-तब जलती है