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अब ज़माने से हम क्यों डरेंगे / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
अब ज़माने से हम क्यों डरेंगे
इस वतन से मुहब्बत करेंगे
यूँ है मुश्किल बहुत मुस्कुराना
पीर से पर बग़ावत करेंगे
दूसरों को अगर मान दें तो
दूसरे भी तो इज़्ज़त करेंगे
छिन गये मुफ़लिसों के निवाले
पेट खाली इबादत करेंगे
जी रहे हैं जो खुदगर्ज़ बन के
वो भला क्या शहादत करेंगे
सिर्फ़ इल्ज़ाम देते रहे जो
किस तरह की सियासत करेंगे
जिसने जाना न करना भलाई
अब सभी की ख़िलाफ़त करेंगे