भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब ज़िंदगी में कोई भी / अशेष श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब ज़िंदगी में कोई भी
शिकवा न गिला है
हमने जो दिया है वही
वापस में मिला है...

अफ़सोस क्यों करें हम
तनहा जो रह गये
दिन में तो सूरज भी सदा
अकेले ही खिला है...

क्यों छोड़ें हौसला हम
दुश्मन से जब घिरे हों
वो फूल भी तो काँटों में
मुसकुराता खिला है...

मत रोओ हर समय ही
अपनी गलतियों का रोना
जिसने न की हो गलती
वो शख़्स ना मिला है...

गैरों की बेरुखी से ना
दिल को चोट पहुँची
हर ज़ख्म हम को दिल का
अपनों से ही मिला है...

ढूँढा कहाँ-कहाँ जहाँ
पाया नहीं उसको कहीं
खुद ही में था वह छुपा हुआ
खुद ही में वह ख़ुद को मिला है...