Last modified on 13 मार्च 2018, at 17:30

अब जिंदगी का साथ निभाया नहीं जाता / रंजना वर्मा

अब जिंदगी का साथ निभाया नहीं जाता
इंसान अब इस शहर में पाया नहीं जाता

दिन गर्दिशों के आइये हम आज तो लड़ें
मायूसियाँ में छोड़ के जाया नहीं जाता

है बेसुरी वीणा ये तार टूट चुके हैं
टूटे हुए साजों को बजाया नहीं जाता

दिल आँख में रख कर वो पुकारे है इस तरह
मजबूरियाँ हैं हम से ही आया नहीं जाता

मिल जाएगी किसी के भी आग़ोश में जगह
जो छोड़ गया उस को भुलाया नहीं जाता

हर सिम्त है जलवागिरी उस की ही नुमायां
लेकिन वो कहीं पर भी तो पाया नहीं जाता

जाती बहार और खिज़ा लौट है आती
मुल्के अदम गया वो बुलाया नहीं जाता

हर ओर बियावान है पत्थर है ज़माना
दिल संग जो उन्हें भी हटाया नहीं जाता

अब खंडहरों में बैठ के रोना फ़िजूल है
नाकामियों का जश्न मनाया नहीं आता