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अब जीवन में कहाँ हैं वे दिन / विजय 'अरुण'
Kavita Kosh से
अब जीवन में कहाँ हैं वे दिन, रात-रात भर बातें करना
दिन को बेख़बरी से सोना और दिनों को रातें करना।
वे कैसे खुश होंगे मुझ से, यही सोचते रहना दिन भर
सीधे सादे प्रेम भाव को, कला बनाना, घातें करना।
मिलन में उनकी राह देखना, उनके न आने पर रो देना।
याद है अब तक रुत बसंत को, रो-रो कर बरसातें करना।
मीठे प्यारे बोल सोचना, वे यह कहें, तो तुम यह कहना
प्यार में जब भी मौक़ा आए, बातों की ख़ैरातें करना।
हाँ मेरी थी एक प्रेमिका, जिस ने मुझ को छोड़ दिया था
वर्तमान की बात 'अरुण' कर, क्या अतीत की बातें करना।