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अब जो बिखरे तो फिजाओं में सिमट जाएंगे / सिया सचदेव
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अब जो बिखरे तो फिजाओं में सिमट जाएंगे
ओर ज़मीं वालों के एहसास से कट जाएंगे
मुझसे आँखें न चुरा, शर्म न कर, खौफ न खा
हम तेरे वास्ते हर राह से हट जाएंगे
आईने जैसी नजाकत है हमारी भी सनम
ठेस हलकी सी लगेगी तो चटक जाएंगे
हम-सफ़र तू है मेरा, मुझको गुमाँ था कैसा
ये न सोचा था कि तनहा ही भटक जाएंगे
प्यार का वास्ता दे कर मनाएगी 'सिया'
मेरे जज़्बात से कैसे वो पलट जाएंगे