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अब तक जब संयोग लिखा है / कमलेश द्विवेदी

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अब तक जब संयोग लिखा है तो क्या आज वियोग लिखूँगा।
फिर यह कैसे सोच रहे हो प्यार छोड़ कर जोग लिखूँगा।

हर ख़्वाहिश पूरी ही होगी
यह कहना मुश्किल होता है।
फिर भी अपनी है मजबूरी
दिल तो आख़िर दिल होता है।
त्याग बड़ा है पर दिल कहता भोग लिखो तो भोग लिखूँगा।
अब तक जब संयोग लिखा है तो क्या आज वियोग लिखूँगा।

सुना वियोगी था पहला कवि
और आह से उपजी कविता।
लेकिन मेरे जीवन में तो
सुखद चाह से उपजी कविता।
तभी वियोग न भाये मुझको सदा सुखद संयोग लिखूँगा।
अब तक जब संयोग लिखा है तो क्या आज वियोग लिखूँगा।

माना कल तक जो संभव थे
आज न वे पल आ सकते हैं।
लेकिन तुमसे पाये जो पल
क्या वे भूले जा सकते हैं।
संयोगों में किया आज तक तुमने जो सहयोग, लिखूँगा।
अब तक जब संयोग लिखा है तो क्या आज वियोग लिखूँगा।