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अब तक जितना जीवन / सुदीप बनर्जी
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अब तक जितना जीवन
उतना हारा
आगे का जो भी बाक़ी
वह भी क्या
मारा-मारा
अब एक उसकी ही शरण
जिसको अब तक नहीं पुकारा ।
रचनाकाल : 1994