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अब तलक भी.. / ज्योत्स्ना शर्मा
Kavita Kosh से
चोट पर चोट देकर रुलाया गया
जब न रोए तो पत्थर बताया गया ।
हिचकियाँ कह रही हैं कि तुमसे हमें
अब तलक भी न साथी ! भुलाया गया ।
ज़िंदगी लम्हा-ए-तर को तरसी मगर
वक़्ते रुखसत पे दरिया बहाया गया ।
ऐसे छोड़ा कि ताज़िंदगी चाहकर
फिर न आवाज़ देकर बुलाया गया
आदतें इस क़दर पक गईं देखिए
आँख रोने लगीं जब हँसाया गया ।
यूँ निखर आई मैं ओ मेरे संगज़र
मुझको इतनी दफ़ा आज़माया गया ।