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अब तुझ से फिरा ये दिल-ए-काम हमारा / 'हसरत' अज़ीमाबादी

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अब तुझ से फिरा ये दिल-ए-काम हमारा
इस कूचे में कम ही रहेगा काम हमारा

है सख़्त मिरे दरपा-ए-जाँ तेरा ग़म-ए-हिज्र
जानाँ से कहे जा कोई पैग़ाम हमारा

जागीर में है ग़ैर की वो बोस-ए-लबगो
क़ाएम रहे ये मंसब-ए-दुश्‍नाम हमारा

होने नहीं पाते ये मिरे दीदा-ए-तर ख़ुश्‍क
दौलत से तिरी तर है सदा जाम हमारा

दो दिन में किसी काम का रहने का नहीं तू
कुछ तुझ से निकल ले कभी तो काम हमारा

इक रोज़ मिला आलम-ए-मस्ती में जो हम से
तन्हा बुत-ए-बद-मस्त मय-आशाम हमारा