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अब तुमको एक सलाम तो बनता है / विमल कुमार

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भागो ! भागो ! नसीम मियाँ !
भागो, भागो !!
जितना हो सके तुम
जल्दी भागो !!
भागो कि
तुम्हारे पीछे-पीछे आ रहा है
एक बुलडोज़र !
कहाँ जाओगे तुम ?
कहाँ रहोगे तुम ?
क्या खाओगे तुम ?
किसी को नहीं मालूम
इसलिए कहता हूँ
भागो ! भागो ! नसीम मियाँ !!
अब आ रहा तुम्हारे पीछे-पीछे
बुलडोज़र !

अपने बच्चों को लेकर भागो
अपनी बीबी को लेकर भागो
अपनी अम्मा को लेकर पहले भागो, वह चल नहीं पाती हैं
अब इस उम्र में
भागो कि
आ रहा है तुम्हारे
पीछे-पीछे बुलडोज़र !

अभी तुम्हारे मोहल्ले में निकली थी तलवारें
अभी लग रहे थे जय श्रीराम के नारे
अभी तुम्हारे मोहल्ले में फहरा रहे थे भगवा झण्डे
अभी तुम्हारे मोहल्ले में चले थे
गोली, चाकू और डण्डे
अभी निकली थी तुम्हारी मोहल्ले में झाँकी
अब मस्ज़िद के पास क्या रह गया था कहने को बाक़ी

भागो! नसीम मियाँ ! भागो !
अब तुम इस मोहल्ले से भागो !
रहते आए थे तुम यहाँ बचपन से
नहीं कोई हुआ था कोई फ़साद
इतने दिन से
तुमने तो लोगों की जान बचाई थी
गर्मी में लोगों की प्यास बुझाई थी
कितने लोगों की शादियाँ भी तुमने कराई थी

कोई तुमको बचाने वाला नहीं रहा
यह मुल्क भी अब तुम्हारे लायक कहाँ रहा
अब ये वतन भी अब तुम्हारा वतन नहीं है
भले ही तुमने दी थी कई कुर्बानियाँ
भले ही तुमने मिटा दी थी
अपनी यहां जवानियाँ

रेहड़ी-पटरी लेकर भागो
जिस पर तुम सब्ज़ी बेचते थे

चलेगी कैसे तुम्हारी गृहस्थी
दिन-रात यही सोचते थे

नसीम मियाँ ! तुम जल्दी भागो
आ गया तुम्हारे घर के ठीक सामने
बुलडोज़र

अरे, यह क्या हो गया नसीम मियाँ !
तुम तो बुलडोज़र के सामने ही तन गए
ज़ुल्म के ख़िलाफ़ ढाल बन गए
बैठ गए वहीं तुम धरना देकर
जाएँगे अब यहाँ से न्याय लेकर

तुम्हें देखकर वह ठिठक गया बुलडोज़र
चलानेवाला भी सहम गया है
नसीम मियाँ !

इस मुल्क का क्या होगा, कहना अब मुश्किल है
पर एक सलाम तो तुम्हारे नाम बनता है
एक क़लाम तो तुम्हारे नाम बनता है ।