अब तेरी हर्फे शिकायत से परेशाँ हूँ मैं / सादिक़ रिज़वी
अब तेरी हर्फे शिकायत से परेशाँ हूँ मैं
ज़िन्दगी चैन से कटने दे कि इन्सां हूँ मैं
पैकरे ख़ाक से कब तारे नफ़स कट जाए
चन्द साइत ही तो दुनिया तेरा मेहमाँ हूँ मैं
बेईमानी का कहीं शाएबा ढूंढें न मिला
नाज़ है ख़ुद पे कि इक साहिबे ईमां हूँ मैं
आसमाँ हो के भी हूँ दर पे तेरे सर-ब-सुजूद
बेनियाज़ी पे तेरी आज भी हैराँ हूँ मैं
वक़्त दरकार नहीं सोच सकूं मुस्तक़बिल
हाल में माज़ी की यादों से परेशाँ हूँ मैं
नाम नेकी है मेरा थाम लो बाहें मेरी
दूर क्यों भागते हो क्या कोई शैताँ हूँ मैं
सारे मक़तूल के माथे पे लिखा होता है
एक मज़लूम हूँ, मासूम हूँ, नादाँ हूँ मैं
दिल में तूफाने गमे इश्क़ दबा रक्खा है
चेहरा झूटा है अयाँ करता है खन्दां हूँ मैं
बाल 'सादिक़' के पकें धूप में या छाओं में
शेरगोई के लिए सुब्हे-बहाराँ हूँ मैं