भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब तो खाओ / देवेंद्रकुमार
Kavita Kosh से
ताक धिना-धिन
ताल मिलाओ
हँसते जाओ,
गोरे - गोरे
थाल कटोरे
लो चमकाओ!
चकला - बेलन
मिलकर बेलें,
फूल - फुलकिया
अम्माँ मेरी
सेंक - सेंककर
खूब फुलाओ!
भैया आओ
अम्माँ को भी
यहाँ बुलाओ,
प्यारी अम्माँ
सबने खाया
अब तो खाओ!