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अब तो चेतो / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

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कल सपने में
अम्मा बोलीं –
बहुत कर चुके अपन-पराया
अब तो चेतो

धूप-हवा-पानी सबके हैं – साँझी धरती
साँझा है आकाश, जहाँ से बरखा झरती

तुमको मूरख
रहीं बनाती
हाट-लाट की ठगिनी माया
अब तो चेतो

तुमने जिन देवों को पूजा, वे अंधे हैं
तुमको घेरे हुए स्वार्थ-गोरखधंधे हैं

छल-प्रपंच में
जो माहिर हैं
तुम भी हो उनकी ही छाया
अब तो चेतो

बाँटा तुमने घर-आँगन को दीवारों से
घेरा ख़ुद को ऊँची-ऊँची मीनारों से

संग्रह किये
सभी के अवगुण
गुन मक्कारों का है गाया
अब तो चेतो