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अब तो जागो ! / अवनीश सिंह चौहान

कौन देख रहा है
हमारे बहते आँसू
लहूलुहान मन
और तन
जिस पर
करते आए हैं
प्रहार
जाने कितने लोग

सदियाँ गुजर गईं
पीड़ाएँ भोगती रहीं
हमारी पीढियां
हमने
फूल दिए
फल दिए
और दीं
तमाम औषधियाँ

फिर भी
हम रहे
उपेक्षित
पीड़ित
अपने ही घर में
अपनों के ही बीच

अब तो जागो-
हे कर्णधारो!
क्योंकि
हम बचेंगे
तो बचेगा
धरा पर
जल और जीवन