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अब तो फिर कहने लगी हैं राजनीतिक आँधियाँ / बल्ली सिंह चीमा
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अब तो फिर कहने लगी हैं राजनीतिक आँधियाँ ।
हर नगर सुन्दर बना है गिरा कर बस्तियाँ ।
आज शायद शहर में आया है कोई रहनुमा,
हर तरफ़ छाई हुई हैं वरदियाँ ही वरदियाँ ।
जब से गाँवों में इधर सूखा पड़ा है, दोस्तो !
क्यों उधर शहरों में जा कर बरसती हैं बदलियाँ ।
सच है रिश्वत के सिवा कुछ और वो खाता नहीं,
शाम ढलते ही पकड़ता है बराबर मछलियाँ ।
रोशनी करने की ख़ातिर जो जले थे एक दिन,
जल रहा है उन चराग़ों से अभी तक आशियाँ ।
आजकल है तू भी चुप औ’ मैं भी कुछ ख़ामोश हूँ,
किस तरह की दुश्मनी है तेरे मेरे दरमियाँ ।