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अब तो मुझे / गोपालदास "नीरज"
Kavita Kosh से
अब तो मुझे न और रुलाओ!
रोते-रोते आँखें सूखीं,
हृदय-कमल की पाँखें सूखीं,
मेरे मरु-से जीवन में तुम मत अब सरस सुधा बरसाओ!
अब तो मुझे न और रुलाओ!
मुझे न जीवन की अभिलाषा,
मुझे न तुमसे कुछ भी आशा,
मेरी इन तन्द्रिल पलकों पर मत स्वप्निल संसार सजाओ!
अब तो मुझे न और रुलाओ!
अब नयनों में तम-सी काली,
झलक रही मदिरा की लाली,
जीवन की संध्या आई है, मत आशा के दीप जलाओ!
अब तो मुझे न और रुलाओ!