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अब तो मेरा मन ही है बस मेरे मन का साथी / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
वे दिन बीत चुके जब तुम को माना मन का साथी।
अब तो मेरा मन ही है बस मेरे मन का साथी॥
हूँ कितनी नादान कि यद्यपि
सच को जान लिया,
फिर भी एक नन्हा सपना
मुट्ठी में बाँध लिया।
अब भी हूँ वैसी ही जैसी पहले मैं तनहा थी।
अब तो मेरा मन ही है बस मेरे मन का साथी॥
मन की बातें अपने मन से
ही कह सुन लेती,
सुख के सुमन रुदन मुक्ताएँ
पलकों से चुन लेती।
तुम न मिले थे तब इस मन में इतनी पीर कहाँ थी?
अब तो मेरा मन ही है बस मेरे मन का साथी॥