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अब तो सच्ची बात कहानी-सी लगती है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

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अब तो सच्ची बात कहानी-सी लगती है
नए गीत की तर्ज़ पुरानी-सी लगती है

तूफ़ानों से मेल हुआ जब से माँझी का
लहर-लहर तब से तूफ़ानी-सी लगती है

बाधाओं के चक्रव्यूह से हार मान ले
मुझको वह निष्प्राण-सी लगती है

साथ खेलकर जिस पर सारा बचपन बीता
तुम बिन अब वह डगर अनजान-सी लगती है

अपनेपन का दम भरते थे सभी जहाँ पर
आज वही बस्ती बेगानी-सी लगती है

कलियाँ जब देतीं भँवरों को मौन निमंत्रण
मुझको वह नीरव अगवानी-सी लगती है

गोरे-गोर गाल, गाल पर काला सा तिल हो
वह प्यारी सूरत लासानी-सी लगती है

चिर वियोग के बाद मिलन हो दो हृदयों का
ऐसे में हर घड़ी सुहानी-सी लगती है

आँसू की आवाज़ नहीं सुन पाता कोई
मतलब की दुनिया दीवानी-सी लगती है

हर दुखियारे मानव की दुख भरी कहानी
मुझको अपनी रामकहानी-सी लगती है

बार-बार जब मुझको छल जाता है कोई
मुझको वह मेरी नादानी-सी लगती है

दिल हिम्मत का थाम लिया करता जब दामन
हर मुश्क़िल में तब आसानी-सी लगती है

क्यों न ‘मधुप’ आकर्षण हो तेरी कविता में
तेरी हर कविता रूहानी-सी लगती है