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अब तो स्वरमय प्राण हमारे / गुलाब खंडेलवाल
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अब तो स्वरमय प्राण हमारे
इन गीतों की नगरी में हम कभी न होंगे न्यारे
हमने शब्दयोग है साधा
जिसमें नहीं काल की बाधा
यहाँ श्याम के सँग है राधा
नित नव रूप सँवारे
यह अंतर का भावलोक है
जहाँ न दुःख, भय, रोग, शोक है
मिलन यहाँ कब सका रोक है
मरण लाख सिर मारे
जो भी इस पथ पर आयेगा
राग यही फिर-फिर गायेगा
स्वर बनकर जग में छायेगा
जीवन जो हम हारे
अब तो स्वरमय प्राण हमारे
इन गीतों की नगरी में हम कभी न होंगे न्यारे