भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब तौ भौतई जाड़ौ हो गऔ / महेश कटारे सुगम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब तौ भौतई जाड़ौ हो गऔ
खून नसन में गाढौ हो गऔ

निकरे सींग मान्स के देखौ
लड़वे भिड़वे चांड़ौ हो गऔ

उल्टी गैल पकर लई सबनें
उलटौ याद पहाड़ौ हो गऔ

नेतन की झूठी बातन सें
देखौ जितै कबाड़ौ हो गऔ

मेंगाई की विकट मार सें
जो देखौ वौ आड़ो हो गऔ

तक़लीफ़न में घिसट-घिसट कें
सुगम संभर कें ठाँड़ौ हो गऔ