भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब तौ भौतई जाड़ौ हो गऔ / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
अब तौ भौतई जाड़ौ हो गऔ
खून नसन में गाढौ हो गऔ
निकरे सींग मान्स के देखौ
लड़वे भिड़वे चांड़ौ हो गऔ
उल्टी गैल पकर लई सबनें
उलटौ याद पहाड़ौ हो गऔ
नेतन की झूठी बातन सें
देखौ जितै कबाड़ौ हो गऔ
मेंगाई की विकट मार सें
जो देखौ वौ आड़ो हो गऔ
तक़लीफ़न में घिसट-घिसट कें
सुगम संभर कें ठाँड़ौ हो गऔ