नज़्रे-ग़ालिब
अब दिखाएगा वो जमाल कहाँ ।
अब मुझे ख़्वाहिशे-विसाल कहाँ ।।
कोई चाहत कोई सवाल कहाँ ।
दिल में लेकिन कोई मलाल कहाँ ।।
कौन बांधेगा किसको बांधेगा
अर्श पर क़ुमक़ुमों का जाल कहाँ ।
एक लम्हे की है तलाश मुझे
अब मुझे फ़िक्रे -माहो-साल कहाँ ।
मैं तो अपनी तलाश में गुम हूँ
तू कहाँ और तेरा ख़याल कहाँ ।
सख़्त पसमांदगी का मंज़र है
अब लहू में कोई उबाल कहाँ ।
वो भी ग़ालिब का है पनाहगुज़ीर
सोज़ के पास अपना माल कहाँ ।।