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अब दूर की हो या... / ब्रजमोहन
Kavita Kosh से
अब दूर की हो या पास की हो
रिश्तेदारी - रिश्तेदारी
रिश्तेदारी से बड़ी नहीं
इस दुनिया की दुनियादारी
कोई बीन बजाए जाता है कोई भैंस नचाए जाता है
बिन कुश्ती के गुत्थमगुत्था ये खेल है भाई कबड्डी-सा
घर का न घाट का वो भी किसी
घर में जा बनता पटवारी ...
कोई बुरा बना कुछ कह करके कोई अच्छा है चुप रह करके
कोई गिरा किसी के कन्धे पर कोई चला उठा के सर पे घर
अच्छा बनने के चक्कर में
सब बुरे बने बारी-बारी ...
इसको जो निभाए जाते हैं वो क्या-क्या ढोंग रचाते हैं
कैसे-कैसे तो जोड़ते हैं फिर एकदम से लुट जाते हैं
फिर हाथ हिलाकर कहते हैं
मेरा नाम है भई बण्टाधारी ...