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अब देखा है / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
मैंने जब देखा था--
- सावन था,
- बादल थे,
इससे कम देखा था !
अब तो वह फागुन है,
फूलों में देखा है,
रंगों से गंधों से
बांधे तन देखा है :
इससे अब देखा है !