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अब नदिया में पानी मत लिख / पवनेन्द्र पवन
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अब पर्वत बर्फ़ानी मत लिख
अब नदिया में पानी मत लिख
राज मगरमच्छ अब करते हैं 
मछली जल की रानी मत लिख
काम-तृप्ति प्यार हुआ अब
मीरा प्रेम दीवानी मत लिख
इस पीढ़ी की एक ही ज़िद है
इक भी बात पुरानी मत लिख
जलते वन ज़हरीले दाने
धरती पर वीरानी मत लिख
कौन पढ़ेगा लोक कथाएँ
एक थे राजा रानी मत लिख
प्यार बहुत है उनको ‘पवन’ से 
झूठी यार कहानी मत लिख
	
	