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अब नहीं मैं लौट पाऊँगा दुबारा / राहुल शिवाय

कांपते अधरों से मुझको
मत बुलाओ
अब नहीं मैं लौट पाऊँगा दुबारा

स्वप्न के पत्ते
सहमकर पीतवर्णी हो गये हैं
जो कराते मधुमिलन वे
पंथ सारे खो गये हैं

मत बहारों के मुझे
सपने दिखाओ
अब नहीं मैं लौट पाऊँगा दुबारा

दीप सारे बुझ
चुके हैं मन्नतों के, हर प्रथा के
सिर्फ अब हैं तैर सकते
आँख में आँसू व्यथा के

तुम हृदय में अल्पनाएँ
मत सजाओ
अब नहीं मैं लौट पाऊँगा दुबारा

पूर्ण करनी जिन्दगी की
तीर्थ यात्रा, है जरूरी
पुण्य फल देगी कहाँ यह
प्रेम की यात्रा अधूरी

उम्र भर का शाप मत
हृद से लगाओ
अब नहीं मैं लौट पाऊँगा दुबारा