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अब ना सहब हम जुलुमिया तोहार / विजेन्द्र अनिल
Kavita Kosh से
अब ना सहब, हम जुलुमिया तोहार, भले भेजा जेहलिया हो
सगरे छिटाइल बा हमरे कमीनी
हमहीं उगाई हमहीं अब कीनीं
उड़ल हवा मे झोपड़िया हमार, हँसे तोहरो महलिया हो ...
हमहीं निकालीं ला सोना ओ चान्दी
हमरे पसीनवा पर टिकल राजधानी
हम भइलीं गंगा के ढहल कगार, करीं तोहरो टहलिया हो ...
तोहरे लड़िकवा के मोटर आ गाड़ी
हमरे लड़िकवा के खाँची कुदारी
अब ना सहब, हम जुलुमिया तोहार, सुना हमरो कहलिया हो ...
पुलिस मिलिटरी के गाँवे बुलाके
दागेला गोली तू सबके पोल्हाके
अब न चली ई बनुकिया तोहार, लहके लागल नलिया हो ...
देख सीवनवा के पेड़ सुगबुगाइल
पूरब में सूरज के लाली छिटाइल
गंगा जस उमड़ल बा जनता के धार, ढह जाई महलिया हो ...
अब ना सहब, हम जुलुमिया तोहार, भले भेजा जेहलिया हो ...