भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब नियति हूँ / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
मर जाऊँगा मैं किसी दिन
यह दुनिया भी
तब भी तुम रहोगे
और तुम्हारी आँख में
किरकिरी-सा ही सही
- न सही किसी मधुर सपने सा
रड़कता ही रहेगा वह दृश्य
जो तुम ने देखा है
यानि मैं
यानी यह दुनिया।
मैं जो अब तुम्हारी सृष्टि था
अब नियति हूँ।
(1981)