अब न बातें जुगों पुरानी कर
अपने वक़्तों की तर्जुमानी कर
अपने शे'रों में अपनी ग़ज़लों में
ख़ुशख़्याली की मेज़बानी कर
उसके आगे तू सर झुका ऐसे
शर्म से उसको पानी पानी कर
जिन उसूलों से प्यार है तुझको
उन उसूलों की पासबानी कर
तुझको दुनिया में ख़ुश जो रहना है
हक़ शनासी न हक़ बयानी कर
हुकमरां दिल को मत बना अपना
अपने दिल पर तू हुकमरानी कर
शायरी का जो शौक़ है तुझको
शे'र भी याद कुछ ज़बानी कर