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अब न यारी रही न यार रहा / आनंद कुमार द्विवेदी
Kavita Kosh से
न तमाशा रहा न प्यार रहा
अब न यारी रही न यार रहा
मेरे अशआर भला क्या कहते
न शिकायत न ऐतबार रहा
मैंने उससे भी सजाएं पायीं
जो ज़माने का गुनहगार रहा
जिक्र फ़ुर्सत का यूँ किया उसने
सारे हफ़्ते ही इत्तवार रहा
खुशबुएँ बेंचने लगे हैं गुल
इस दफ़े अच्छा कारोबार रहा
आज से मैं भी तमाशाई हूँ
आज तक मुद्दई शुमार रहा
ये बुलंदी छुई सियासत ने
चोर के हाथ कोषागार रहा
दर्द का सब हिसाब चुकता है
सिर्फ़ ‘आनंद’ का उधार रहा