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अब न हमसे गिला करे / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
अब न मुझसे गिला करे कोई
दर्द सह कर हँसा करे कोई
लोग तो सिर्फ दग़ा करते हैं
काश हम से वफ़ा करे कोई
ऐसे हमदर्द को कहें भी क्या
दर्द दे कर दवा करे कोई
डाल पर बैठकर जड़ें काटे
यूँ न अपना बुरा करे कोई
सुने फ़रियाद गरजमंदों की
मुफ़लिसों पर दया करे कोई
ख्वाब बनकर हसीन रातों का
चश्मे - नम में बसा करे कोई
आह अपनी छुपा के होठों में
सबकी ख़ातिर दुआ करे कोई
उम्र हर मोड़ पर अकेली है
साथ यूँ भी दिया करे कोई
एक दिन जी के लुटा दे खुशबू
फूल सा बन जिया करे कोई