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अब प्रियतम आ जाए / बाबा बैद्यनाथ झा
Kavita Kosh से
धरती रहती है जब प्यासी, सावन प्यास बुझाए।
विरह अग्नि से जलता जियरा, अब प्रियतम आ जाए॥
बीत गया है यह सावन तो, अब भादो है आया।
जिसने अपने रौद्र रूप से, मुझको खूब डराया।
उमड़-घुमड़ कर बादल नभ से, पानी जब बरसाता।
एकाकी घर में रहने से, मन मेरा घबड़ाता।
बिजुरी चमक हिया को अतिशय, प्रेम बिना तरसाए।
विरह अग्नि से जलता जियरा, अब प्रियतम आ जाए॥
एक तरफ सखियाँ उपवन में, हैं आनन्द मनाती।
साथ झूमतीं निज साजन के, सब हैं मुझे चिढ़ाती।
विरह वेदना से पीड़ित मैं, लगती हूँ बेचारी।
आज मुझे लगता है सचमुच, अबला होती नारी।
अब विधना ही आकर मेरे, सारे कष्ट भगाए।
विरह अग्नि से जलता जियरा, अब प्रियतम आ जाए॥