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अब बाज आओ / ऋषभ देव शर्मा
Kavita Kosh से
देखो!
अब बाज आओ,
मुझे और
सपने ना दिखाओ,
हर रात
एक सपने का
क़त्ल होता है,
देखते नहीं क्या तुम –
मेरी आँखों की धरती
लोहूलुहान हैं|
मुझे
इस तरह
पेशेवर हत्यारा न बनाओ|
अब बाज भी आओ!