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अब बामो-दर का सर्द बदन चाटती है धूप / शीन काफ़ निज़ाम
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अब बामो-दर का सर्द बदन चाटती है धुप
जीनों का पार कर के कंहा आ गई है धुप
मुम्किन है ये कि भीड़ में ‘संज्ञा’ का बाप हो
इक बार जोर से कहो कितनी कड़ी है धूप
सौ-सौ जतन से उस का तराशा गया बदन
कुव्वत मिली किसी को, किसी को मिली है धूप
ऐसे में खुश्क पत्तों से उम्मीद क्या करें
कदमों बड़े है साये तो मीलों बड़ी है धूप
अब तो किसी को आरजू-ए-बालो-पर नही
फिर किस के पर जलाने को पर तौलती है धूप
माही के खार से वा उलझता है रात भर
आफाक के करीब पड़ी केंचुली है धुप
बस्ती में आ के ताब दिखाये तो क्या हुआ
जंगल में जुगनुओं का बदन चाटती है धूप
दरवाजें सारे शहर के अन्दर से बन्द है
अब के अजीब लोगों के पाले पड़ी है धूप