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अब भी चुप बनी रहोगी? / असंगघोष
Kavita Kosh से
सुनो
ओ पृथ्वी!
हमें प्रताड़ित कर
तुम्हें रौंदते रहे
तुम्हारे प्यार द्विज पुत्र!
तुम्हारे साथ बलात्कार कर
उन्होंने डाल दिया
अन्याय का बीज
तुम्हारी कोख में
जिसका मैं गवाह रहा
सदियों से मुझ पर अत्याचार कर
मेरे पैरों में
जातिवाद की बेड़ियाँ बाँध
गवाही देने से
रोके रहे
मुझे वे
और तुम फिर भी
चुपचाप देखती रहीं
तुम्हारे गर्भ में पड़ा
वह रक्तबीज
नमी पा
अंकुरित हो
पल्लवित हो पौधा बन
आज भी करेगा अत्याचार
कल की तरह
क्या तुम
अब भी
संवेदना शून्य हो!
चुप बनी रहोगी?