भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब भी दिल में कई अरमान सजा रक्खे हैं / सिया सचदेव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब भी दिल में कई अरमान सजा रक्खे हैं
मुझको ये बात ज़माने से जुदा रक्खे हैं

मेरे एहसास की चादर में हैं पैबंद बहुत
ज़िंदगी इसमें तेरे राज़ छुपा रक्खे हैं ......

मेरी आहों की जबां कोई समझता कैसे
अपने ग़म अपने ही सीने में छुपा रक्खे हैं

क्या मिरे दिल के तडपने का है एहसास उन्हें
खुश रहे कैसे जो अपनों को ख़फ़ा रक्खे हैं

चाँद तारे तेरे सभी दामन में सभी भर दूंगा
तुमने झूठे ही मुझे ख़्वाब दिखा रक्खे हैं

तेरी चाहत पे है कुर्बान मेरी जाँ हमदम
दिल में है प्यार तो क्यूँ झूठी अना रक्खे हैं

उनपे इल्ज़ाम ये दुनिया न लगाने पाए
हमने सीने में कई दर्द छुपा रक्खे है