भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब भी है कोई चिड़िया... / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब भी है कोई चिड़िया जो सिसक रही है

नील गगन के पंखों में

नील सिंधु के पानी में;

मैं उस चिड़िया की सिसकन से सिहर रहा हूँ

वह चिड़िया मानव का आकुल अमर हृदय है ।