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अब मसर्रत की कोई नज़्म न गा पाओगे / रंजना वर्मा
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अब मसर्रत की कोई नज़्म न गा पाओगे
तुम जो जाओगे तो फिर लौट के न आओगे
हैं हवाएँ बड़ी चुपचाप बड़ी खामोशी
गीत सन्नाटों का सुन लोगे तो डर जाओगे
बेमुरव्वत हैं बड़ी रौशनी की कन्दीलें
ग़र इन्हें हाथ लगाओगे तो जल जाओगे
तुम तो लपटों में चिता की जले औ छूट गये
हम को ता उम्र तड़पता ही मगर पाओगे
तुम को है याद बना कर बसा लिया दिल में
ये वायदा करो कि रूठ के न जाओगे
अब तो हर शै है जिंदगी की डरातीं हम को
किस तरह से जियें न साथ ग़र निभाओगे
तुम्हारा रास्ता तकती हैं निगाहें अब भी
ये बता जाओ कि कब लौट के घर आओगे