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अब मुझ से ये रात तय न होगी / शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी

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अब मुझ से ये रात तय न होगी
पत्थर ये जबीं न है न होगी

ख़ुर्शीद न हो तो शहर-ए-दिल में
परछाईं सी कोई शय नहीं होगी

दरवाज़ा खटक उठेगा इक बार
दस्तक कभी पय-ब-पय न होगी

आँखों में लहू सँभाल रखना
अब के मीना में मय न होगी