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अब मेरे नाम की खुशी है कहीं / संकल्प शर्मा
Kavita Kosh से
अब मेरे नाम की ख़ुशी है कहीं,
मैं कहीं मेरी ज़िन्दगी है कहीं।
बात करने से ज़ख़्म जलते हैं,
आग सीने में यूँ दबी है कहीं।
नब्ज़ चलती है साँस चलती है,
ज़िन्दगी फ़िर भी तू थमी है कहीं।
जिसकी हसरत फ़रिश्ते करते हैं,
सुनते हैं ऐसा आदमी है कहीं।
जिस घड़ी का था इंतज़ार मुझे,
वो घड़ी पीछे रह गई है कहीं
इक दिया मेरे घर मे जलता है
और संकल्प रौशनी है कहीं