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अब मैं कैसे प्यार करता हूँ / नवल शुक्ल

जैसे ही मिलता है समय
कुलाँचे भरता है खरगोश
नाचता है मोर
भागता है सरपट साँप, बिल की ओर
बच्चे के पास माँ
प्रेमी गलियो में
खिड़की से झाँकती हैं वर्जित कन्याएँ
दूब उगती है पहाड़ पर
दीवालों पर पीपल
हवा बहती है
चलती है ट्रेन
उतरते-चढ़ते हैं लोग जिन्हें कहीं जाना है
घिरती है, एशिया-अफ़्रीका में विपदाएँ
अन्तरिक्ष में घटनाएँ
मेरा दिल धड़कता है
अब मैं कैसे प्यार करता हूँ।