अब मैं तुम्हारे नाम से जानी जाती हूँ / विपिन चौधरी
एक समय के बाद
याद का एक बेहतर कोना
घिस कर
नुकीला हो गया है
जबकि बाकी तीनों कोने अपनी-अपनी जगह दुरुस्त हैं
ज्यादा इस्तेमाल से चींजें अपना आकार खो देती हैं
इस डर से तुम्हें याद करने का पुराना शऊर भी भुला बैठी हूँ
और सच तो यह है कि
तुम्हे याद करते रहने के लिए मैंने प्रेम नहीं किया था
और भूल जाने के लिए भी नहीं
बीच के उस समय में जब
मैं किसी शपथ पुस्तिका पर हाथ रख कर प्रण लेने से इनकार कर रही थी
उस वक्त के लिए भी नहीं
प्रेम, मैंने अपने जिन्दा रहने के लिए किया था ताकि
कोई तो कायदे का काम हो मेरे खातिर
बाद की बातों को बाद में याद करना चाहिए
शुरुआ़त की बातों को सबसे पहले
प्रेम की उस दस्तक से शुरू करते हैं
जो मेरे सुकून पर बिजली की तरह गिरी
और मैं पूरी तरह भस्म
अब मेरी राख उड़ती है पश्चिम में तो रात होती है
मैं रोती हूं तो ज्वालामुखी उबलते हैं दक्खिन में
जब यह राख अपने मस्तिष्क पर मलती हूँ तो
जीवन बवंडर की तरह गोल हो जाता हैं
मैं अपनी स्थानीयता से ही खुश थी
तुम्हारे प्रेम ने मुझे ब्रह्माण्ड में
एक नायब चीज की तरह पेश किया
अब मैं तुम्हारे नाम से जानी जाती हूँ
ढहने से पहले हर इमारत
खूबसूरत होती है
नजर लगने से पहले हर प्रेम बेदाग
प्रेम से हट कर मैं कुछ कहूँ तो
शापग्रस्त शिला हो जाऊँ
पर सच कहूँ
अब यादें मुझे सबसे अजीज दोस्त लगती हैं।